वट सावित्री 2024: तिथि, शुभ मुहूर्त, धार्मिक महत्व और शास्त्रीय संदर्भl

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वट सावित्री 2024: तिथि, शुभ मुहूर्त, धार्मिक महत्व और शास्त्रीय संदर्भ - FAQs

वट सावित्री 2024: तिथि व शुभ मुहूर्त

वट सावित्री पूजा सुहागिन महिलाओं द्वारा पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। यह ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।

वर्ष 2024 में वट सावित्री का पर्व शुक्रवार, 7 जून को पड़ेगा। पूजा का शुभ मुहूर्त अभी निर्धारित नहीं हुआ है। आम तौर पर वट पूजा सूर्योदय से पहले की जाती है, अतः मुहूर्त सुबह स्नान के पश्चात का ही माना जा रहा है। निर्धारित होते ही इस पृष्ठ पर शुभ मुहूर्त की जानकारी अवश्य अपडेट कर दी जाएगी।

आपकी सहायता के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:

  • वट सावित्री पूजा की सम्पूर्ण जानकारी व धार्मिक ग्रंथों से प्राप्त की जा सकती है।
  • पूजा की तैयारी, जैसे – सामग्री इकट्ठा करना, व्रत रखने का संकल्प आदि आप अभी से आरंभ कर सकती हैं।
  • शुभ मुहूर्त की जानकारी किसी विश्वसनीय ज्योतिषी से भी प्राप्त की जा सकती है।
  • इस पर्व पर वट वृक्ष की पूजा की जाती है। यदि आस-पास वट वृक्ष उपलब्ध न हो तो आप समीप के मंदिर में भी पूजा कर सकती हैं।

हमें आशा है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। वट सावित्री का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाएं और अपने परिवार के साथ वट सावित्री की कथा अवश्य पढ़ें।

वट सावित्री 2024: धार्मिक महत्व और शास्त्रीय संदर्भ:-

वट सावित्री पूजा सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाए जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व पति-पत्नी के बीच अटूट प्रेम और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक माना जाता है।

धार्मिक महत्व (Religious Significance):

वट सावित्री पर्व की जड़ें प्राचीन पौराणिक कथाओं में गहराई तक जाती हैं। यह कथा सत्यवान और सावित्री नामक दंपत्ति के प्रेम और समर्पण की अमर गाथा है। राजकुमारी सावित्री ने सत्यवान को अपने पति के रूप में चुना, भले ही उन्हें यह ज्ञात था कि उनका पति केवल एक वर्ष ही जीवित रहेंगे। अपने पति के प्रति दृढ़ प्रेम और धर्मनिष्ठा के बल पर, सावित्री ने यमराज का पीछा किया, जो सत्यवान की आत्मा को लेने आए थे। सावित्री के अदम्य साहस और पतिभक्ति से प्रभावित होकर यमराज ने सत्यवान को पुनर्जीवन प्रदान किया। वट सावित्री पर्व इसी कथा के माध्यम से पति-पत्नी के बीच अटूट प्रेम और कर्तव्यनिष्ठा का संदेश देता है।

वट (बरगद) के वृक्ष का धार्मिक महत्व (Significance of the Banyan Tree):

वट सावित्री पूजा में वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में वट वृक्ष को पूजनीय माना जाता है। इसकी अविश्वसनीय दीर्घायु और विशालकाय शाखाएं दीर्घायु और विस्तृत परिवार का प्रतीक मानी जाती हैं। साथ ही, वट वृक्ष को त्रिदेवों का वास माना जाता है: इसकी जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में शिव का वास माना जाता है। इस त्रिदेवीय समागम के कारण ही वट वृक्ष की पूजा को अत्यंत शुभ माना जाता है। वट सावित्री के दिन वट वृक्ष की पूजा करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और संतान प्राप्ति की इच्छा भी पूर्ण होती है।

Official Source Page :- Wikipedia

शास्त्रीय संदर्भ (Scriptural References):

वट सावित्री पर्व का उल्लेख कई प्रमुख हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है, जिनमें शामिल हैं:

  • महाभारत (Mahabharata): वनवास के दौरान पांडवों को वट सावित्री की कथा सुनाई जाती है। युधिष्ठिर द्वारा पूछे जाने पर द्रौपदी को यह कथा सुनानी पड़ती है। इस कथा के माध्यम से व्रत के महत्व का वर्णन किया जाता है।
  • स्कंद पुराण (Skanda Purana): इस पुराण में वट सावित्री व्रत के महत्व और पूजा विधि का विस्तृत वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, एक सती सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के च clutches से वापस लाने के लिए कठोर तपस्या की थी।
  • भविष्य पुराण (Bhavishya Purana): इस पुराण में भी वट सावित्री व्रत के फलदायी होने का उल्लेख है।

आगामी अपडेट (Upcoming Updates):

पूजा के विधि-विधान (Rituals and Practices):

वट सावित्री पूजा के दौरान कई तरह के विधि-विधान किए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख विधियां इस प्रकार हैं:

  • व्रत का पालन (Observing the Fast): अधिकांश महिलाएं वट सावित्री के दिन व्रत रखती हैं। व्रत सूर्योदय से पहले शुरू होता है और अगले दिन सूर्योदय के बाद ही समाप्त होता है। कुछ महिलाएं केवल निर्जला व्रत रखती हैं, तो कुछ फल और जल ग्रहण कर सकती हैं। अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही व्रत का पालन करना चाहिए।
  • स्नान और पूजन सामग्री (Bathing and Puja Samagri): व्रत रखने वाली महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं। इसके बाद पूजा की सामग्री जैसे गंगाजल, रोली, मौली, हल्दी, सिंदूर, फल, फूल, दीपक, अगरबत्ती आदि तैयार की जाती हैं।
  • वट वृक्ष की पूजा (Worship of the Banyan Tree): पूजा के लिए वट वृक्ष के पास जाया जाता है। वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित किया जाता है। इसके बाद वृक्ष के चारों ओर सूत का धागा लपेटा जाता है। कुछ स्थानों पर महिलाएं एक दूसरे को भी यह धागा बांधती हैं।
  • कथा वाचन (Recitation of the Story): वट सावित्री की कथा का श्रद्धापूर्वक वाचन किया जाता है। कथा सुनने के बाद आरती उतारी जाती है और भोग लगाया जाता है।
  • पारायण और दान (Prayer and Donation): कुछ महिलाएं वट सावित्री के दिन विशेष पूजा पाठ या मंत्रों का जाप भी करती हैं। पूजा के उपरांत सामर्थ अनुसार दान का भी विधान है।

उपसंहार (Conclusion):

वट सावित्री पर्व पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। पूजा के माध्यम से सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करने की भी मान्यता है। उम्मीद है कि यह लेख आपको वट सावित्री 2024 के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।

आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता (Modern-day Relevance):

वट सावित्री की कथा सदियों पुरानी है, लेकिन इसका मूल संदेश आज भी प्रासंगिक है। यह पर्व हमें पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम, सम्मान और समर्पण का महत्व सिखाता है। आज के व्यस्त जीवन में, जहां दंपत्ति दोनों कामकाजी होते हैं, इस तरह के पर्व हमें अपने जीवनसाथी के लिए समय निकालने और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करते हैं। वट सावित्री की कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि मुश्किल समय में भी एक-दूसरे का साथ देना और धैर्य रखना कितना महत्वपूर्ण है।

व्रत का पालन और उत्सव (Preparation and Celebration of Vat Savitri):

वट सावित्री का व्रत रखने और उत्सव मनाने की प्रक्रिया इस प्रकार है:

आवश्यक सामग्री (Necessary Materials):

  • गंगाजल (Ganga Jal – Holy water)
  • रोली (Roli – Red powder)
  • मौली (Moli – Sacred thread)
  • हल्दी (Haldi – Turmeric)
  • सिंदूर (Sindoor – Vermillion)
  • फल और फूल (Fruits and Flowers)
  • दीपक (Diya – Oil lamp)
  • अगरबत्ती (Agarbatti – Incense sticks)
  • कच्चा सूत (Raw Cotton Thread)
  • वस्त्र (Clothing)

विधि (Rituals):

  1. व्रत का संकल्प (Observing the Fast): अधिकांश महिलाएं वट सावित्री के एक या दो दिन पहले व्रत का संकल्प ले लेती हैं। व्रत सूर्योदय से पहले शुरू होता है और अगले दिन सूर्योदय के बाद ही समाप्त होता है। अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही निर्जला या फल-जल ग्रहण कर व्रत रखा जा सकता है।
  2. स्नान और पूजन की तैयारी (Bathing and Preparing for Puja): व्रत वाले दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद पूजा की सामग्री इकट्ठा कर लें।
  3. वट वृक्ष की पूजा (Worship of the Banyan Tree): पूजा के लिए निकटतम वट वृक्ष के पास जाएं। वृक्ष की जड़ में गंगाजल अर्पित करें। इसके बाद वृक्ष के चारों ओर कच्चा सूत लपेटें। कुछ स्थानों पर महिलाएं एक-दूसरे को भी यह धागा बांधती हैं।
  4. कथा वाचन और आरती (Storytelling and Aarti): वट सावित्री की कथा का श्रद्धापूर्वक वाचन करें। कथा सुनने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की आरती उतारें।
  5. फल और फूल चढ़ाना (Offering of Fruits and Flowers): वट वृक्ष को फल और फूल चढ़ाएं।
  6. दान का विधान (Donation): अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब या जरूरतमंद महिला को सुहाग की सामग्री दान करें।
  7. पारायण और भोजन (Prayer and Meal): कुछ महिलाएं वट सावित्री के दिन विशेष पूजा-पाठ या मंत्रों का जाप भी करती हैं। पूरे विधि-विधान से पूजा संपन्न करने के बाद सूर्योदय के बाद ही भोजन ग्रहण करें।

ध्यान देने योग्य बातें (Important Points to Remember):

– व्रत रखने वाली महिलाओं को पूरे दिन सकारात्मक और शांत रहना चाहिए।

– पूजा के दौरान स्वच्छ वस्त्र पहनें और सात्विक भाव से पूजा करें।

– यदि आप किसी कारणवश व्रत नहीं रख पा रही हैं, तो भी आप वट वृक्ष की पूजा कर सकती हैं और कथा सुन सकती हैं।

अतिरिक्त विषय (Additional Topics):

क्षेत्रीय भिन्नताएं (Regional Variations):

वट सावित्री का पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन क्षेत्रीय रूप से इसकी कुछ भिन्नताएं देखने को मिलती हैं। उदाहरण के लिए:

  • महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में इस दिन महिलाएं “आंबे हळद” (Aambe Haldi) का प्रसाद बनाती हैं, जिसमें कच्चा आम और हल्दी शामिल होती है। पूजा के बाद इसे एक-दूसरे को खिलाया जाता है।
  • गुजरात: गुजरात में विवाहित महिलाएं वट सावित्री के दिन निर्जला व्रत रखती हैं और शाम के समय पूजा करती हैं। पूजा के बाद वे एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर का टीका लगाती हैं।
  • उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश में कुछ स्थानों पर वट सावित्री के दिन विवाहित महिलाएं पीपल के पेड़ की भी पूजा करती हैं।

व्रत का महत्व (Significance of Fasting):

वट सावित्री के अवसर पर रखे जाने वाले व्रत का केवल शारीरिक शुद्धिकरण ही नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धिकरण का भी महत्व है। व्रत रखने से मन को नियंत्रित करने और इच्छाओं को दबाने की शक्ति मिलती है। साथ ही, यह अपने पति के प्रति समर्पण और उनके सुख-स्वास्थ्य की कामना का प्रतीक भी माना जाता है। अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही व्रत रखना चाहिए।

बरगद वृक्ष की पर्यावरणीय महत्ता (Environmental Significance of the Banyan Tree):

वट सावित्री की पूजा में वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। इसका एक कारण यह भी है कि बरगद का वृक्ष पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह वृक्ष वातावरण को शुद्ध करता है और ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाता है। साथ ही, अपने विशालकाय आकार के कारण यह वृक्ष छाया प्रदान करता है और पक्षियों सहित कई जीवों को आश्रय देता है। वट सावित्री के पर्व के माध्यम से लोग पेड़ों के संरक्षण के लिए भी प्रेरित होते हैं।

आपको शुभ वट सावित्री (Wishing you a Happy Vat Savitri)!

वट सावित्री 2024: तिथि, शुभ मुहूर्त, धार्मिक महत्व और शास्त्रीय संदर्भ – FAQs (Frequently Asked Questions)

वट सावित्री 2024: तिथि, शुभ मुहूर्त, धार्मिक महत्व और शास्त्रीय संदर्भ – FAQs

1. वट सावित्री 2024 में कब मनाया जाएगा?

उत्तर: वट सावित्री 2024, शुक्रवार 7 जून को मनाया जाएगा।

2. वट सावित्री का शुभ मुहूर्त क्या है?

उत्तर: 2024 के लिए अभी तक वट सावित्री का शुभ मुहूर्त निर्धारित नहीं हुआ है। आम तौर पर वट पूजा सूर्योदय से पहले की जाती है, अतः मुहूर्त सुबह स्नान के पश्चात का ही माना जा रहा है। निर्धारित होते ही इस पृष्ठ पर शुभ मुहूर्त की जानकारी अवश्य अपडेट कर दी जाएगी।

3. वट सावित्री व्रत का क्या महत्व है?

उत्तर: वट सावित्री व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि वट सावित्री व्रत और पूजा करने से पति को सुख-स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है और घर-परिवार में सौभाग्य का वास होता है।

4. वट सावित्री व्रत कैसे रखा जाता है?

उत्तर: वट सावित्री व्रत रखने के लिए महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं। इसके बाद पूजा की सामग्री तैयार करती हैं। वट वृक्ष के पास जाकर पूजा की जाती है। कथा का वाचन किया जाता है और आरती उतारी जाती है। कुछ महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, तो कुछ फल और जल ग्रहण कर सकती हैं।

5. वट सावित्री की कथा क्या है?

उत्तर: वट सावित्री की कथा सत्यवान और सावित्री नामक दंपत्ति के प्रेम और समर्पण की अमर गाथा है। राजकुमारी सावित्री ने सत्यवान को अपने पति के रूप में चुना, भले ही उन्हें यह ज्ञात था कि उनका पति केवल एक वर्ष ही जीवित रहेंगे। अपने पति के प्रति दृढ़ प्रेम और धर्मनिष्ठा के बल पर, सावित्री ने यमराज का पीछा किया, जो सत्यवान की आत्मा को लेने आए थे। सावित्री के अदम्य साहस और पतिभक्ति से प्रभावित होकर यमराज ने सत्यवान को पुनर्जीवन प्रदान किया।

6. वट सावित्री का शास्त्रीय संदर्भ क्या है?

उत्तर: वट सावित्री पर्व का उल्लेख कई प्रमुख हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है, जिनमें शामिल हैं:

  • महाभारत: वनवास के दौरान पांडवों को वट सावित्री की कथा सुनाई जाती है। युधिष्ठिर द्वारा पूछे जाने पर द्रौपदी को यह कथा सुनानी पड़ती है। इस कथा के माध्यम से व्रत के महत्व का वर्णन किया जाता है।
  • स्कंद पुराण: इस पुराण में वट सावित्री व्रत के महत्व और पूजा विधि का विस्तृत वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, एक सती सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के च clutches से वापस लाने के लिए कठोर तपस्या की थी।
  • भविष्य पुराण: इस पुराण में भी वट सावित्री व्रत के फलदायी होने का उल्लेख है।

यह FAQs वट सावित्री 2024 के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देते हैं। यदि आपके कोई अन्य प्रश्न हैं, तो बेझिझक पूछें।

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